
ड्रंकेन ड्राइविंग ने फिर चार लोगों की जान ले ली. इस बार हादसा नोएडा में हुआ. आप लकी हैं कि खबर आपके शहर से नहीं आई. लेकिन खबर कभी भी आ सकती कि सेलफोन पर बात करते हुए किसी ने राहगीर पर कार चढ़ा दी या नशे में धुत ड्राइवर ने फुठपाथ पर सो रहे लोगों को हमेशा के लिए सुला दिया. मोटर वेहिकल एक्ट की धराएं सख्त होती जा रही हैं फिर भी हादसे कम होने के बजाय बढ़ रहे हैं. हो सकता है आपके शहर में कभी-कभी ट्रैफिक वीक या मंथ मनाया जाता हो. लेकिन इसमें सारा जोर अवेयरनेस पर कम, फाइन ठोंकने पर ज्यादा रहता है. ऐसी खबरें शायद ही आती हैं कि ब्रेथ एनालाइजर टेस्ट में फेल होने पर इतने लोगों पर फाइन किया गया या उनके डीएल जब्त किए गए. सड़क किनारे खड़े हो थोड़ी देर वॉच कीजिए, ड्राइव करते और आराम से सेलफोन पर बात करते कई लोग दिख जाएंगे. आप ट्रैफिक रूल्स फालो करते हैं लेकिन ये आपकी सेफ्टी की गॉरन्टी नहीं. हो सकता है कि सामने से आने वाला ड्रंक हो या सेल पर बात में मशगूल हो. शाम के बाद तो खतरा और बढ़ जाता है. अमेरिका, यूरोप में तो और भी सख्ती है. कुछ दिनों पहले कैलिफोर्निया के गर्वनर अॅर्नाल्ड श्वाजऱ्नेगर की वाइफ को ड्राइविंग के समय सेल फोन पर बात करने पर फाइन झेलना पड़ा था. इसी तरह फुटबाल स्टार बेकहम को भी ड्राइविंग के समय सेल फोन से खेलते लासएंजेल्स पुलिस ने धर लिया था. लेकिन इंडिया में तो छोटे-बड़े सब ट्रैफिक रूल्स तोड़ते हैं और कभी जुगाड़ से तो कभी धौंस देकर बच जाते हैं. दोष ट्रैफिक पुलिस को क्यों देते हैं. नियम तोड़ कर वसूली का मौका तो हम ही देते हैं. आप सही रास्ते पर चलिए, पुलिस भी रास्ते पर आ जाएगी.
कौन सा एक्सपेरिमेंट कर रहे थे जो टिपण्णी का बक्सा ही गायब हो गया था :)
ReplyDeleteसड़क पर तो नियम पालन करने के साथ अब ये भी जरूरी हो गया है कि सामने वाले के नियम-तोड़ पर भी ध्यान दिया जाए. वर्ना तो लोग लाल-सिग्नल तोड़कर ठोक जाते हैं.
हमारे देश में अपनी और दूसरों दोनों की सुरक्षा के प्रति एक अजीब सी लापरवाही है. पिछले दिनों अमेरिका में राष्ट्रपति ओबामा के एक निजी सडक पर भी हैल्मेट बिना साइकिल चलाने पर हुये हंगामे और उनकी तीव्र आलोचना का उदाहरण बडा सामयिक है. उसके उलट हमारे यहाँ मोटर साइकिल पर भी हैल्मेट नहीं लगाये जाते और इनफोर्स किये जाने पर विरोध भी होता है.हमें जानकारी के साथ जागरूकता भी चाहिये.
ReplyDeleteआपकी बातों से असहमत होने का कोई मतलब ही नहीं। वास्तव में यदि लोग ड्राइविंग की शर्तों का सही से पालन करें, तो सारे एक्सीडेंट अपने आप रूक जाएंगे।
ReplyDeleteमहँगी गाड़ियों में महँगी शराब पीकर होश खोने वाले लोग क्यां इंसान होते हैं .. यह प्रश्न विचारने योग्य है... और बिना सपनों की नींद में फुटपाथों पर सोने वाले लोग भी इंसान ही होते हैं या नहीं ये भी !
ReplyDeleteवॉक एंड टॉक क्लचर में उम्मीद ही क्या की जा सकती है। जहां तक नियमों की बात है, क्या वो हमारे देश में कभी लागू हो सकते हैं...? जब तक ह्रदय से आवाज नहीं आएगी तब तक बदलाव संभव नहीं है। सही कहा आपने, हम सभी को बदलने की जरूरत है।
ReplyDeletewalk and talk ki kripa se...
ReplyDeletena walk karne ke layak rahenge na hi talk karne ke laayak hi bachenge...
bahut khub
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