फ्रेंची में छोटे चूहे….!
जरा सोचिए छोटे चूहे फ्रेंची पहन के घूमेंगे
तो कैसे लगेंगे। सल्लू की फिल्म
जय हो देख कर ऐसा ही लगा। बड़ा हल्ला मचा रखा था। बिजनेस चाहे
जैसा करे लेकिन
फिल्म ने भेजा फ्राई कर दिया । रजनीकांत सर जब और बूढ़े होने होकर थोड़ा
और येड़ा हो जाएंगे तो वो जैसे रोल करेंगे वैसा सल्लू ने इस फिल्म में
किया है। केजरीवाल के बाद पहली बार आटो वालों को इस फिल्म में सम्मान मिला
जब आटो को द्वितीय विश्वयुद्ध के जमाने के एक टैंक ने एस्कॉर्ट किया। सीमेंट
वालों को भी अब अपने विज्ञापन में हाथी की जगह सलमान को रख लेना चाहिए।
वो अपनी खोपड़ी से कुछ फोड़ पाएं या ना फोड़ पाएं लेकिन खोपड़ी सलामत
रहेगी।
फिल्म देख्र कर लगा कि साला सेंसर बोर्ड वाला भी सटक गया है। लगता है वहां भी कच्छा गिरोह का बोलबाला है। दुनिया कहां से कहांं पहुंच गई लेकिन ये लोग चड्ढïी और चूहे में उलझे हुए हैं। तभी तो छोटे चूहे वाला लौंडा पूरी फिल्म में मम्मी जैसी लडक़ी की कच्छी का रंग बताता घूम रहा है। हीरोइन छोटे चूहों का जिस तरह से मजाक बना रही है, डर है की चीन में यह फिल्म बैन ना हो जाए क्योंकि जो चीज छोटी होती है पता नहीं क्यों लोग उसे चीन से जोड़ देते हैं। जैसे चीनिया बादाम और चीनिया केला और अब कहीं छोटे चूहे को भी चीन से ना जोड़ दिया जाए। यहां फिल्म समीक्षा नहीं हो रही, मुद्दा कच्छी का है। चूहे वाले लौंडे की उम्र को हमने पटरे वाली जांघिया पहन कर बिताया । ढीली ढाली और इतनी हवादार कि कभी कभी भीतर कुछ ना पहनने का अहसास होता था। पता ही नहीं चला कब पटरे वाली जांघिया विंटेज कारों की तरह धरोहर बन गई। उसकी जगह स्लीक, स्मार्ट कच्छियों ने ले ली। सच बताऊं शुरू में छोटी वाली कच्छी पहनने में शर्म महसूस होती थी। लगता था कि इसे तो लड़कियां पहनती हेंैं। किसी ने बताया, अबे ये तो फ्रेंची हैै, लड़कियां जो पहनती उसे पैंटी कहते हैं।
लगता है छोटी चड्ढी सबसे पहले फ्रेंच लोग पहनते होंगे तभी इसका नाम फ्रेंची पड़ा। अब से मैं फ्रेंच भाइयों को छोटे चूहे वाला कहूंगा। गनीमत है चीनी लोगों ने छोटी कच्छी की शुरुआत नही की नहीं तो फ्रेंची की नाम चींची या चींछी जैसा ही कुछ होता। संभव है सबसे पहले फ्रांस के छोटे चूहों ने पटरे वाली जांघिया को कुतर कुतर कर अपने नाप का बनाया हो और बाद में फं्रासीसियों ने उसे पहनना शुरू कर दिया और उनके नाम पर पेटेंट हो गई कच्छी। अब बेचारे चाइनीज छोटे चूहे कोई भी कच्छी पहने वो फ्रेंची ही कहलाएगी ।
फिल्म देख्र कर लगा कि साला सेंसर बोर्ड वाला भी सटक गया है। लगता है वहां भी कच्छा गिरोह का बोलबाला है। दुनिया कहां से कहांं पहुंच गई लेकिन ये लोग चड्ढïी और चूहे में उलझे हुए हैं। तभी तो छोटे चूहे वाला लौंडा पूरी फिल्म में मम्मी जैसी लडक़ी की कच्छी का रंग बताता घूम रहा है। हीरोइन छोटे चूहों का जिस तरह से मजाक बना रही है, डर है की चीन में यह फिल्म बैन ना हो जाए क्योंकि जो चीज छोटी होती है पता नहीं क्यों लोग उसे चीन से जोड़ देते हैं। जैसे चीनिया बादाम और चीनिया केला और अब कहीं छोटे चूहे को भी चीन से ना जोड़ दिया जाए। यहां फिल्म समीक्षा नहीं हो रही, मुद्दा कच्छी का है। चूहे वाले लौंडे की उम्र को हमने पटरे वाली जांघिया पहन कर बिताया । ढीली ढाली और इतनी हवादार कि कभी कभी भीतर कुछ ना पहनने का अहसास होता था। पता ही नहीं चला कब पटरे वाली जांघिया विंटेज कारों की तरह धरोहर बन गई। उसकी जगह स्लीक, स्मार्ट कच्छियों ने ले ली। सच बताऊं शुरू में छोटी वाली कच्छी पहनने में शर्म महसूस होती थी। लगता था कि इसे तो लड़कियां पहनती हेंैं। किसी ने बताया, अबे ये तो फ्रेंची हैै, लड़कियां जो पहनती उसे पैंटी कहते हैं।
लगता है छोटी चड्ढी सबसे पहले फ्रेंच लोग पहनते होंगे तभी इसका नाम फ्रेंची पड़ा। अब से मैं फ्रेंच भाइयों को छोटे चूहे वाला कहूंगा। गनीमत है चीनी लोगों ने छोटी कच्छी की शुरुआत नही की नहीं तो फ्रेंची की नाम चींची या चींछी जैसा ही कुछ होता। संभव है सबसे पहले फ्रांस के छोटे चूहों ने पटरे वाली जांघिया को कुतर कुतर कर अपने नाप का बनाया हो और बाद में फं्रासीसियों ने उसे पहनना शुरू कर दिया और उनके नाम पर पेटेंट हो गई कच्छी। अब बेचारे चाइनीज छोटे चूहे कोई भी कच्छी पहने वो फ्रेंची ही कहलाएगी ।