Sunday, September 13, 2009

बदलाव वक्त की जरूरत

एजूकेशन सिस्टम के बारे में पहले बुरी खबर. लोअर और हायर दोनों लेवल पर हमारे एजूकेशन सिस्टम में गिरावट और दोहरे मापदंड की शिकायतें बढ़ती जा रहीं थीं. इनसे रिलेटेड डिस्टर्बिंग न्यूज इधर कुछ ज्यादा ही आ रही हैंं. एक खबर आई कि गुडग़ांव में बारहवीें मेंं 92 परसेंट माक्र्स पाने वाली एक स्टूडेंट ने इस लिए बिल्डंग से छलांग लगा दी क्योंकि उसका एडमिशन दिल्ली के एक प्रतिष्ठत कालेज में नहीं हो सका था. फिर पंजाब के संगरूर से खबर आईआई कि बोर्ड एग्जाम में फेल होने पर एक छात्रा ने जान देदी. फिर उसकी छोटी बहन के बड़ी बहन के गम में जान दे दी. कालेजों की बढ़ती संख्या के साथ ही मनमानी कैपिटेशन फीस और बिना प्रॉपर इंफ्रास्ट्रकचर के कालेज और इंस्टीट्यूट्स चलाने की शिकायतें भी बढ़ती जा रही थी.ं अब अच्छी खबर. जब किसी सिस्टम में फाल्ट बहुत बढ़ जाता है तो उसकी रिपेयरिंग और ओवरहालिंग की जरूरत पड़ती है. इसी लिए सेंट्रल ह्यूमन रिसोर्सेज डेवलपमेंट मिनिस्ट्री ने यशपाल समिति की सिफारिशों को तुरंत लागू करने का फैसला किया है. कैब (द सेंट्रल एडवाइजरी बोर्ड आफ एजूकेशन) ने इन रिफा र्स को हरी झंडी भी दे दी है. सीबीएसई ने तो गे्रडिंग सिस्टम और दसवी में आप्शनल बोर्ड एग्जाम की व्यवस्था को इसी सेशन से लागू करेन का फैसला किया है. स्टेट्स ने भी इन पर आमतौर पर सहमति जताई है और उम्मीद है कि वे भी जल्द ही नई व्यवस्था को अपना लेंगे. कैब ने सभी बोर्ड के लिए यूनिफार्म साइंस और मैथमेटिक्स सिलेबस लागू करने पर भी सहमति जताई है. इससे बोर्ड लेवल पर एजूकेशन के समान स्तर को मेंटेन करने में मदद मिलेगी. एचआरडी मिनिस्ट्री ने यह भी घोषणा की है कि वाइस चांसलर्स का सेलेक्शन अब कैब के 30-40 एक्स्पट्र्स का पैनल करेगा. वे स्टेट गवर्नमेंट को वीसी के नाम रिकमेंड करेंगे. इससे हायर एजूकेशन में पॉलिटिकल इंटरफियरेंस कम करने और अधिक ट्रांसपरेंसी लाने में मदद मिलेगी. ग्रेडिंग सिस्टम का आमतौर पर लोगों ने स्वागत किया है लेकिन लोगों का कहना है कि मेधावी स्टूडेंट के करियर पर फर्क पड़ेगा. लेकिन एक्स्पट्र्स का मानना है कि होम एग्जाम और ग्रडिंग सिस्टम से स्टूडेंट्स को अनावश्यक प्रेशर और तनाव से मुक्ति मिलेगी. अब एक-दो नंबर के लिए मेधावी छात्र डिप्रेस्ड नही ंहोंगे.

2 comments:

  1. कितना फायदा होता है ये तो वक्त ही बतायेगा पर बदलाव जरूरी है.

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  2. muje to lagta hai k teacheron k sochne ka najaria badal gaya hai. mere time me hum din at ara aal padte the phir bhi kisi k 70 percent se jyada number nahi aaye. ab 92 tak aa jate hain. aise me teacheron k sacth sath bachon ka satar bhi gir raha hai. education reh hi kahan gayi hai aaj tak.


    ab bachon ko bachpan se hi gold chammach se khana khilaoge to wo steel chammach se nahi khayega, balki boilding ki chat se khud jayega, yahi aaj k dor me ho raha hai

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kya baat hai