Saturday, May 23, 2009

ये इश्क नहीं आसां

इश्क-विश्क, प्यार-व्यार आपको भले ना हुआ हो लेकिन स्टूडेंट लाइफ में लव और लव अफेयर पर डिस्कशन के बिना करियर पूरा कर लिया तो समझिए आपकी एजूकेशन में कहीं ना कही गंभीर फाल्ट है. टीन एज होती ही ऐसी है कि हर दूसरी लड़की में गर्लफ्रेंड बनने की संभावना नजर आती है. दिल की रोड पर लव का ट्रैफिक सरपट भागता है भले ही वन वे हो. कुछ ऐसे होते हैं जो खुद तो गर्लफ्रेंड बनाने में सफल नहीं हो पाते लेकिन लव अफेयर्स पर दूसरों को सलाह देने में महारत हासिल होती है. जैसे किसी को खुद बाइक चलानी ना आती हो पर वह दूसरों को सेफ ड्राइविंग की सलाह देने पर उतारू हो जाए. मेडिकल कालेज हो या इंजीनियरिंग कालेज या फिर किसी यूनिवर्सिटी, रीयल कैंपस लाइफ तो हॉस्टल में दिखाई देती है. यूनिटी इन डायवर्सिटी, गजब का सोशलिज्म. हास्टल के हर कमरे में दिखती है अलग तरह की क्रिएटिविटी. एक से एक चौकाने वाले स्लोगन और पोस्टर्स. जरूरी नहीं कि जो लिखा हो उससे उस रूम का इनमेट इत्तेफाक रखता हो. बस अच्छा लगा तो लगा दिया. ऐसे ही एक सज्जन को सलमा हयाक, ब्रिटनी स्पीयर्स और मल्लिका शेरावत के बड़े पोस्टर्स मुफ्त में मिल गए तो भाई ने रूम की तीनों दीवारों पर चस्पा कर दिए. हां, आलमारी पर एक बित्ते का स्टिकर भी चिपका था जिस पर गायत्री मंत्र लिखा था. लेकिन कुछ दिनों बाद अचानक तीनों सुंदरियों की जगह सारनाथ, संगम और हिमालय के पोस्टर लगे दिखे. पत चला कि बीएचयू के प्रोफेसर साहब अपनी बेटी के रिश्ते के लिए भाई साहब को देखने आए थे. लौट कर उन्होंने मीडिएटर को खरी खोटी सुनाई कि कहां भेज दिया था, लड़के का चाल-चलन ठीक नहीं है. इसी तरह हॉस्टल रूम्स की दीवारों पर चस्पा कोटेशंस अपनी अलग कहानी कहते हैं. इनको देख कर लगता है कि किसी कमरे में कामरेड, किसी कमरे में थियेटर आर्टिस्ट, कहीं फिलासफर तो कहीं संघ का प्रचारक रह रहे हैं. लेकिन इन सब के बीच डिस्कशन का कॉमन टापिक होता है- इश्क का चक्कर यानी लव अफेयर. दोस्तों की गोल में इश्क पर चर्चा तो बहुत होती थी लेकिन सैद्धांतिक रूप से ही जो इसे व्यवहार में लाने लगता था उसे गोल से बाहर कर दिया जाता था. अगर वो फिर भी नहीं मानता तो कैंपस में उसकी गर्लफ्रेंड के सामने दोस्त लोग कुछ ऐसी हरकत कर देते कि वो लड़की उसे भी पक्का लफंगा समझ बात करना बंद कर देती और वो दोस्त फिर कुढ़ते हुए हमारी गोल में शामिल हो जाता.